गर्भाशय ग्रीवा के क्या कार्य होते हैं? आपको कितनी बार गर्भाशय ग्रीवा जांच करवानी चाहिए? नई गाइडलाइनों से पाप स्मीयर की अनुशंसित अवधि में क्या बदलाव हुआ है? गर्भाशय ग्रीवा, उसकी सेहत, विकारों और जांच की विस्तृत जानकारी जानें।
गर्भाशय ग्रीवा महिला प्रजनन तंत्र का हिस्सा है। योनि नली के अंतिम छोर पर स्थित गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय की सुरक्षा करती है और गर्भावस्था व प्रसव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस लेख में आप जानेंगी:
गर्भाशय ग्रीवा महिला प्रजनन तंत्र का हिस्सा है। आकार में छोटी होते हुए भी यह गर्भावस्था, सामान्य प्रसव, प्रजनन प्रबंधन और माहवारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गर्भाशय ग्रीवा एक बेलनाकार अंग है, जो गर्भाशय के निचले सिरे पर स्थित है। यह गर्भाशय को योनि से जोड़ती है। यह आम तौर पर 4 सेंटीमीटर लंबी और 2-3 सेंटीमीटर व्यास में होती है। गर्भाशय ग्रीवा तंतु-मांसपेशीय ऊतक से बनी है और दो मुख्य भागों में बंटी होती है।
एक्टोसर्विक्स योनि के अंतिम छोर पर स्थित बाहरी भाग है, जिसमें एक छोटा सा छिद्र जिसे एक्सटर्नल ओएस कहते हैं, होता है। एंडोसर्विक्स अंदर की नली होती है, जो गर्भाशय की ओर रहती है और इंटरनल ओएस पर समाप्त होती है।
गर्भाशय ग्रीवा की नली स्तम्भकीय ऊतक (कॉलमनर एपिथीलियम) से बनी होती है, जो चिपचिपा द्रव बनाती है, जिसकी सांद्रता माहवारी चक्र के दौरान बदलती रहती है। इसमें बहुत सारी ग्रंथिया और तंत्रिका छोर होते हैं। इसकी स्थिति माहवारी, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौर में बदलती रहती है।
गर्भाशय ग्रीवा म्यूकस (म्यूकस द्रव) बनाती है और तरल पदार्थों को गर्भाशय तक ले जाने या वहां से बाहर निकलने देती है। यह छोटा सा अंग सामान्य प्रसव के समय भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गर्भाशय ग्रीवा के मुख्य कार्य:
गर्भाशय ग्रीवा की सेहत जटिल विषय है। यह विभिन्न संक्रमणों एवं विकारों के प्रति संवेदनशील है, जिनका कारण वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या परजीवी हो सकते हैं।
इसके सबसे संवेदनशील होने के कुछ कारण— इसका स्थान, हार्मोनल परिवर्तन, और कोशिकीय बनावट हैं।
स्थान की वजह से यह यौन संक्रमित बीमारियों (STIs) और योनि में मौजूद सूक्ष्मजीवों के संपर्क में रहती है।
शरीर में हार्मोन के बदलने से यह अंग भी प्रतिक्रिया करता है। हार्मोन का उतार-चढ़ाव (माहवारी, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति) गर्भाशय ग्रीवा म्यूकस की मात्रा एवं प्रकृति बदलता है, जिससे संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है।
गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाएँ अन्य प्रजनन अंगों की अपेक्षा संक्रमण और कैंसर की ओर ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
आमतौर पर गर्भाशय ग्रीवा के संक्रमण / बीमारी के लक्षण:
गर्भाशय ग्रीवा की सूजन, जो संक्रमण या किसी रसायन की वजह से होती है। इसमें असामान्य स्त्राव, सेक्स के दौरान दर्द और माहवारी के बीच रक्तस्राव हो सकता है।
इसमें गर्भाशय ग्रीवा के अंदर की कोशिकाएँ बाहर आ जाती हैं। आमतौर पर यह हानिरहित है, पर इससे स्त्राव और स्पॉटिंग बढ़ सकती है।
ये छोटे, सौम्य (गैर-कैंसर) उभार होते हैं, जो कभी-कभी अनियमित रक्तस्राव या स्त्राव का कारण बन सकते हैं।
असामान्य कोशिकाएँ गर्भाशय ग्रीवा में विकसित हो जाती हैं। यह नियमित पाप स्मीयर जांच से पता चलता है। समय रहते इलाज न हो तो कैंसर में बदल सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान जब गर्भाशय ग्रीवा समय से पहले खुल जाती है। इससे प्रीटरम डिलीवरी का रिस्क बढ़ जाता है।
गर्भाशय ग्रीवा का छिद्र संकरा हो जाता है, जिससे माहवारी रक्त बहाव में मुश्किल, अधिक दर्द और उर्वरता पर असर पड़ सकता है।
गर्भाशय ग्रीवा में विकसित एक घातक रोग, जिसका मुख्य कारण एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमावायरस) संक्रमण होता है।
गर्भाशय ग्रीवा पर छोटी, तरल से भरी गांठें, जो आमतौर पर हानिरहित हैं। नियमित पैल्विक जांच में इन्हें पाया जाता है। दर्द या असामान्य रक्तस्राव हो तो डॉक्टर इन्हें हटा सकते हैं।
गर्भाशय ग्रीवा की बाहरी सुरक्षात्मक कोशिका परत क्षतिग्रस्त हो जाती है। इससे संक्रमण का जोखिम, स्पॉटिंग, या स्त्राव हो सकता है।
सौम्य ट्यूमर जो गर्भाशय ग्रीवा पर या पास में बढ़ सकते हैं। बड़े फाइब्रॉइड से पेट में दबाव, दर्द या असामान्य रक्तस्राव हो सकता है।
क्लैमाइडिया, गोनोरिया, हर्पीज एवं अन्य संक्रमण गर्भाशय ग्रीवा को प्रभावित कर सकते हैं और कई लक्षण पैदा कर सकते हैं।
गर्भाशय ग्रीवा जांच, जिसे पैप स्मीयर भी कहते हैं, एक प्रक्रिया है जिसमें आपकी स्त्री रोग विशेषज्ञ गर्भाशय ग्रीवा से स्वैब द्वारा कोशिकाएँ एकत्र करती हैं। इन्हें जांचा जाता है कि कहीं कैंसर या एचपीवी संक्रमण की संभावना तो नहीं है।
यह नियमित पैल्विक जांच के साथ की जाती है। 21 से 65 वर्ष की महिलाओं के लिए 3 वर्ष में एक बार पाप स्मीयर जांच कराना अनुशंसित है। 30-65 वर्ष की महिलाओं के लिए एचपीवी जांच हर 5 साल में की जा सकती है। यदि एचपीवी या अनेक पार्टनर या कोशिकीय असामान्यताएं पहले से हों तो जांच बार-बार करानी चाहिए।
पहले हर साल जांच की अनुशंसा थी, पर अब नए दिशा-निर्देशों के अनुसार हर 3-5 साल में ही पर्याप्त है, क्योंकि असामान्य कोशिकाओं को कैंसर बनने में समय लगता है।
अगर आपके टेस्ट में कैंसर से जुड़े एचपीवी स्ट्रेन या असामान्य कोशिकाएँ दिखें, तो आगे की जांच जरूरी होगी।
कोल्पोस्कोपी एक डायग्नोस्टिक जांच है, जिसमें डॉक्टर विशेष आवर्धक डिवाइस द्वारा गर्भाशय ग्रीवा, योनि व भगांकुर को नजदीक से देखते हैं। असामान्य कोशिकाएँ हाईलाइट करने के लिए घोल लगाया जाता है, जिससे बायोप्सी के लिए संदिग्ध क्षेत्र पहचाने जा सकें।
गर्भाशय ग्रीवा की थोड़ी सी ऊतक निकाली जाती है, जिसे माइक्रोस्कोप के नीचे जांचा जाता है, इससे कोशिकाओं के कैंसर बनने का पता चलता है।
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर सबसे अधिक बचाव योग्य कैंसरों में से एक है। आप इसका जोखिम एचपीवी वैक्सीन लगवाकर बहुत हद तक कम कर सकती हैं और शुरुआती अवस्था में यह आसानी से ठीक भी हो जाता है।
रोकथाम के उपाय:
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर केवल एक संभावित विकार है। संक्रमण से बार-बार सूजन और प्रजनन समस्याएँ हो सकती हैं।
गर्भाशय ग्रीवा संक्रमण से बचाव के उपाय:
हालाँकि गर्भाशय ग्रीवा छोटा सा अंग है, यह प्रजनन प्रक्रियाओं और घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि एचपीवी या किसी संक्रमण या कोशिकीय असामान्यता की रिपोर्ट आए तो घबराएं नहीं — आज चिकित्सा इतनी विकसित है कि अधिकतर गर्भाशय ग्रीवा कैंसर जल्दी पहचाने जाने पर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। सबसे जरुरी है – वैक्सीनेशन कराएं, सुरक्षित यौन संबंध बनाएं, और नियमित जांच करवाती रहें।
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